धर्मेंद्र कुमार पाण्डेय की रिपोर्ट
मिलार्ड मेरी प्रेमिका को वापस दिला दीजिए - प्रेमी ने लगाई कोर्ट से गुहार
Gujrat high court news : गुजरात हाईकोर्ट ने एक बड़ा ही दिलचस्प मामला देखने को मिला है आपको बता दें कि एक शख्स ने कोर्ट में याचिका दायर कर मांग किया कि उसकी गर्लफ्रेंड को उसके पति से छुड़ाकर उसे कस्टडी में सौंप दिया जाए। जब यह मामला जज के सामने पहुंचा तो वहां के जज ने इस अजीबोगरीब मांग करने वाले व्यक्ति पर ही ₹5000 का जुर्माना लगा दिया। इस जुर्माने की रकम को युवक को स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी को देनी होगी। यह पूरा वाकया बनासकांठा जिले का है। इस मामले के याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर करके कहा कि जिस महिला की हिरासत वह मांग रहा है वह उसके साथ लिव इन रिलेशनशिप में थी। उस महिला की शादी उसकी मर्जी के विरुद्ध किसी अन्य व्यक्ति से कर दी गई थी और दोनों की बन नहीं पा रही थी। महिला अपने पति और ससुराल को छोड़कर उसके साथ रहने आ गई वह साथ रहे और लिव-इन रिलेशनशिप एग्रीमेंट भी साइन कर लिया गया। इस पूरे मामले में एक दिलचस्प मोड़ तब आ गया जब महिला के परिजन व ससुराल वाले आ गए और उसे वापस पति के पास ले गए उस व्यक्ति ने अपनी प्रेमिका के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करते हुए उच्च न्यायालय से संपर्क साधा जिसमें कहा गया कि महिला अपने पति की अवैध हिरासत में थी और उसकी इच्छा के विरुद्ध उसे रोका जा रहा था उसने हाईकोर्ट से मांग की वह महिला को उसके पति से हिरासत में छुड़ाकर उसे सौपे। इस क्रम में राज्य सरकार ने याचिका का विरोध किया राज्य सरकार ने याचिका का विरोध यह तर्क देते हुए किया कि इस तरह की याचिका दायर करने के लिए आदमी के पास कोई अधिकार ही नहीं है यदि महिला अपने पति की हिरासत में है तो यह नहीं कहा जा सकता कि यह अवैध हिरासत में है।
कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया?
पूरे प्रकरण की सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति वी एम पंचोली और न्यायमूर्ति एच एम प्राक्षक की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता की महिला से अब तक शादी नहीं हो पाई है और उसका अपने पति से तलाक भी नहीं हुआ है। पीठ ने कहा इसलिए हमारा विचार है कि प्रतिवादी संख्या 4(महिला) की प्रतिवादी संख्या 5(उसके पति)के साथ हिरासत को अवैध हिरासत नहीं कहा जा सकता है जैसा कि याचिकाकर्ता द्वारा आरोप लगाया गया है और याचिकाकर्ता के पास वर्तमान तथाकथित लिव इन रिलेशनशिप एग्रीमेंट के आधार पर याचिका दायर करने का कोई अधिकार नहीं है। इस कड़ी में अदालत ने याचिकाकर्ता पर ही ₹5000 का जुर्माना लगाकर उसे राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के पास जमा कराने का निर्देश दे दिया।