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एक्यूप्रेशर द्वारा रंगों का चिकित्सकीय महत्व .....

डॉ नवीन सिंह की कलम से


हमारे ऋषि-मुनियों को रंगो के उपयोग का संपूर्ण ज्ञान था हमारे भारतीय कैलेंडर का प्रारंभ बसंत रितु के आगमन पर फागुन मास निर्धारित किया गया था और इस समय होली अत्यंत महत्वपूर्ण त्यौहार के अनुसार भारतवासी प्राकृतिक रंगों जैसे टेशू (पीला), लाल, हरा,अबीर रंगों से हमारे शरीर को सिंचित करते थे जिसका प्रभाव हमारे शरीर के प्रतिरोधक तंत्र इम्यून सिस्टम पर पड़ता था और पूरे वर्ष भर मौसम परिवर्तन तथा अन्य कारणों से शरीर में रोगों के किटाणु एवं जीवाणुओं से संघर्ष करने की क्षमता उत्पन्न होती थी


एक्यूप्रेशर द्वारा रंगों का चिकित्सकीय महत्व .....

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प्राचीन काल से ही हमारे देश में एक्यूप्रेशर / एक्यूपंचर पद्धति का उपयोग स्वास्थ्य अर्जुन हेतु किसी न किसी रूप में सदियों से होता रहा है । ऋषि मुनियों द्वारा शरीर के विभिन्न बिंदुओं पर दबाव देकर अथवा मालिश द्वारा उपचार किया जाता रहा है । इन बिंदुओं का उल्लेख हमारे पुरातन शास्त्र ग्रंथ आयुर्वेद में "मर्म " के रूप में हुआ है । देश/काल के परिवर्तन के साथ-साथ इस पद्धति में भी विकास हुआ और कालांतर में सूची भेदन के द्वारा भी उपचार होता रहा है इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण महाभारत काल में तत्कालीन राजवैद्य द्वारा मर्म पर सूची भेदन द्वारा उपचार का उल्लेख उपलब्ध है बाद में यह अध्यक्ष बौद्ध धर्म के अनुयायियों द्वारा लंका चीन और जापान ले जाई गई और इसका संपूर्ण एवं सम्यक विकासशील देश में हुआ आज सारे संसार के अलग-अलग क्षेत्रों में यह पद्धति विभिन्न रूपों में विकसित हो रही है जैसे अमेरिका में रिफ्लेक्सोलॉजी जापान में शिया स्तु चीन में एक्यूपंचर जर्मनी में इलेक्ट्रिक पंचायत कोरिया एवं रूस में सर पार्क द्वारा प्रतिपादित सुजोक एक्यूपंचर के रूप में एक्यूपंचर दो शब्दों के योग से बना है एक्यू का अर्थ है की सूचिका निडिल एवं पंक्चर का अर्थ है भेदन अर्थात शरीरस्थ विभिन्न बिंदुओं के द्वारा सूचिका द्वारा वेदन करके शरीर में उत्पन्न विकार टॉक्सिंस को विस्थापित कर के स्वास्थ्य अर्जित किया जाता है सूचिका के स्थान पर इन बिंदुओं पर उंगली का प्रयोग करके पंक्चर के स्थान पर दबाव दिया जाना एक्यूप्रेशर कहलाता है इन दोनों पद्धतियों से सर्वथा विभिन्न इन बिंदुओं पर केवल कुछ रंग के बिंदु अंकित कर देने मात्र से उपचार किया जा सकता है कलर थेरेपी में बताए गए सिद्धांतों व दर्शन अनुसार रंगों का प्रयोग होगा।

हमारे ऋषि-मुनियों को रंगो के उपयोग का संपूर्ण ज्ञान था हमारे भारतीय कैलेंडर का प्रारंभ बसंत रितु के आगमन पर फागुन मास निर्धारित किया गया था और इस समय होली अत्यंत महत्वपूर्ण त्यौहार के अनुसार भारतवासी प्राकृतिक रंगों जैसे टेशू (पीला), लाल, हरा,अबीर रंगों से हमारे शरीर को सिंचित करते थे जिसका प्रभाव हमारे शरीर के प्रतिरोधक तंत्र इम्यून सिस्टम पर पड़ता था और पूरे वर्ष भर मौसम परिवर्तन तथा अन्य कारणों से शरीर में रोगों के किटाणु एवं जीवाणुओं से संघर्ष करने की क्षमता उत्पन्न होती थी अस्वस्थ ता भी आज की अपेक्षा कम ही परि लक्षित होती थी किंतु धीरे-धीरे प्राकृतिक पूर्वजों द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों की अवहेलना होली के अवसर पर होने लगी और धीरे-धीरे शरीर रोगों से लड़ने की क्षमता खोने लगा और आज परिणाम सामने है एक अन्य उदाहरण द्वारा रंग के समुचित उपयोग को समझा जा सकता है । हमारे देश में आदिकाल से ही विवाहित स्त्रियां माथे पर दोनों भौहों के मध्य भाग पर लाल रंग की बिंदी लगाती है । वही लाल रंग शरीर के रक्त संचार में वृद्धि करता है । वैज्ञानिक दृष्टिकोण से या स्थान पिट्यूटरी ग्लैंड से संबंधित है जिससे शरीरस्थ सभी अंतः स्रावी ग्रंथियों उत्तेजित होकर विभिन्न प्रकार के हार्मोंस का स्राव करती है जिससे स्त्रियों में कमनीयता बनी रहती है इसके विपरीत विधवा स्त्री को उस भाग पर चंदन लेपन का परामर्श हमारे पूर्वज ने दिया है जिससे काम भावना का शमन हो सके इस प्रकार रंगों का महत्व हमारे पूर्वज द्वारा , आदिकाल से जानकर किसी न किसी रूप में प्रयोग शरीर साधना के लिए करते रहे हैं परंतु आज पुनः बढ़ती बीमारियों के दुष्चक्र के अनेक वैकल्पिक उपचार पद्धतियों को जन्म दिया जिसमें से रंगो द्वारा एक्यूप्रेशर / एक्यूपंचर अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है , जिसकी आधुनिक समय में कोरिया के महान चिंतक दार्शनिक एवं वैज्ञानिक डॉ सर पार्क जे वू ने आधारशिला रखी है उनके द्वारा भौतिक एवं पराभौतिक सादृश्य सिद्धांत स्थापित किया गया है जिसके द्वारा एक्यूपंचर जगत में एक अद्भुत विधा का प्रादुर्भाव हुआ है और संपूर्ण मानव जगत लाभान्वित हो रहा है । उस पद्धति का भारत जैसे देश जहां जनसंख्या का अत्यधिक भार है, और जीवन स्तर गरीबी रेखा से बहुत नीचे है एवं विभिन्न प्रकार के प्रदूषण से घिरा प्राणी समाज आज दुघर्ष रोगों से ग्रसित है जिसके उपचार में असीमित धन एवं शक्ति काव्य हो रहा है ऐसे परिवेश में डॉ पार्क द्वारा प्रतिपादित सुजोक Onnuri (Whole Body) Medicine एक चमत्कारिक अविष्कार है इस पद्धति के सिद्धांतों का उपयोग कर रंगो द्वारा चिकित्सा पद्धति की जा रही है।

प्रोफेसर डॉ नवीन सिंह (निदेशक) 

अखण्ड /संकल्प चैरिटेबल ट्रस्ट /आस्था आयुर्वेदिक एक्यूप्रेशर नेचुरोपैथी होलिस्टिक ट्रीटमेंट एंड ट्रेनिंग सेंटर कटेश्वर, पार्क गांधी नगर - बस्ती (उत्तर प्रदेश) 05542281040,9415628668

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