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आर्य वीर दल और आर्य समाज ने मनाया हकीकत राय का बलिदान दिवस

आर्य वीर दल और आर्य समाज ने मनाया हकीकत राय का बलिदान दिवस


आर्य समाज नई बाजार बस्ती द्वारा स्वामी दयानन्द विद्यालय सुर्तीहट्टा बस्ती में

बसन्तोत्सव को अमर हुतात्मा वीर हकीकत राय के बलिदान दिवस के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर बच्चों ने वाग्देवी सरस्वती की वैदिक मंत्रों से आराधना की तत्पश्चात वीर हकीकत राय को वैदिक यज्ञ के माध्यम से भावभीनी श्रद्धांजलि दी। ओम प्रकाश आर्य प्रधान आर्य समाज नई बाजार बस्ती ने बताया कि पंजाब के सियालकोट मे सन् 1719 में जन्मे वीर हकीकत राय जन्म से ही कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। आप बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। बड़े होने पर आपको उस समय कि परम्परा के अनुसार फारसी पढ़ने के लिये मौलवी के पास मस्जिद में भेजा गया। वहाँ के कुछ शरारती मुसलमान बालक हिन्‍दू बालको तथा हिन्‍दू देवी देवताओं को अपशब्‍द कहते रहते थे। बालक हकीकत उन सब के कुतर्को का प्रतिवाद करता और उन मुस्लिम छात्रों को वाद-विवाद मे पराजित कर देता। एक दिन मौलवी की अनुपस्थिति मे मुस्लिम छात्रों ने हकीकत राय को खूब मारा पीटा। बाद मे मौलवी के आने पर उन्‍होने हकीकत की शिकायत कर दी कि उन्होंने मौलवी के यह कहकर कान भर दिए कि इसने बीबी फातिमा को गाली दी है। यह सुनकर मौलवी नाराज हो गया और हकीकत राय को शहर के काजी के सामने प्रस्‍तुत कर दिया। बालक के परिजनो के द्वारा लाख सही बात बताने के बाद भी काजी ने एक न सुनी और उन्हें मृत्युदंड की सजा सुनाई।माता पिता व सगे सम्‍बन्धियों ने हकीकत को प्राण बचाने के लिए मुसलमान बन जाने को कहा मगर धर्मवीर बालक अपने निश्‍चय पर अडिग रहा और बंसत पंचमी २० जनवरी सन 1734 को जल्‍लादों ने 12 वर्ष के निरीह बालक का सर कलम कर दिया। वीर हकीकत राय अपने धर्म और अपने स्वाभिमान के लिए बलिदानी हो गया और जाते जाते इस हिन्दू कौम को अपना सन्देश दे गया। यज्ञ कराते हुए योग शिक्षक गरुण ध्वज पाण्डेय ने बताया कि हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई, पारसी, जैन, बौद्ध आदि मत है और इन सब मत या मजहब का मूल स्रोत सत्य सनातन वैदिक धर्म ही है वीर हकीकत राय को कुछ मजहबी लोग जबरन इस्लाम मत को स्वीकार करने का दबाब दे रहे थे पर वे अपने मानव धर्म पर ही अडिग थे जिसके लिए उन्हे बीच चौराहे पर मृत्यु दण्ड दिया गया और उनका सिर धड़ से अलग कर दिया गया पर उनके चेहरे पर अपूर्व तेज था। भय या निराशा के कोई चिह्न नहीं थे क्योंकि वे पुनर्जन्म को मानने वाले थे। जो काम जीकर न कर पाये वो मरकर कर दिखाया। इस अवसर पर बच्चों ने गीत कविता के द्वारा उनको नमन किया। योग शिक्षक राममोहन पाल ने बच्चों को आपस में मिलजुल कर रहने का संकल्प दिलाया और कहा कि मानव धर्म सबसे बड़ा है जिस पर चलने वाले व्यक्ति के भीतर दया, करुणा, मैत्री के भाव होते हैं वह समाज से ऐसा व्यवहार करता है कि उसके कार्य लोगों के लिए आदर्श बन जाते हैं। महिमा आर्य प्रशिक्षिका आर्य वीरांगना दल बस्ती ने वीर हकीकत की कहानी सुनाकर सबकी आँखों को अश्रुपूरित कर

दिया। इस अवसर पर देवव्रत आर्य, नितीश कुमार, शिव श्याम, विश्वनाथ, गणेश आर्य, पुनीत राज, परी कुमारी, रिमझिम, राजेश्वरी, कार्तिकेय, राधा देवी सहित अनेक लोग उपस्थित रहे।


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