संक्रमण काल में और भी प्रासंगिक है राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस
धर्मेंद्र कुमार पाण्डेय
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विषम परिस्थितियां हमेशा इंसान को मजबूत बना देती हैं। मसलन यदि आपको किसी पोखरे में धक्का दे दिया जाए तो आप बच निकलने के लिए हाथ-पैर चलाएंगे ही और यही हाथ पैर का चलाना आपको एक दिन तैरना सिखा देगा आज समूचा विश्व कोविड-19 नामक बीमारी से त्रस्त है चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है, मौतें हो रही हैं लोग अपने घरों में खुद को बचाकर रखना चाह रहे हैं लेकिन इस संक्रमण काल में भी बहुत कुछ सकारात्मक तथ्य भी सामने आ रहे हैं। हमारा देश जब वैश्विक महामारी की चपेट में आया तो हम इसके लिए तैयार नहीं थे क्योंकि वास्तव में हमें इस बीमारी की भयावहता का अंदाजा ठीक-ठाक नहीं था किंतु जब देश में संक्रमण का खतरा बढ़ने लगा बीमारी ने अपना विकराल रूप दिखाना शुरू किया तब तक हमारे देश के वैज्ञानिक और इंजीनियर तैयार हो चुके थे। मौजूदा हालात भले ही नाजुक हों लेकिन ऐसे हालात में 11 मई को मनाया जाने वाला राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस और भी प्रासंगिक हो जाता है। इस घड़ी में हमारे देश के इंजीनियर वैज्ञानिकों ने जो किया है वह समूचे विश्व के लिए सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस का इतिहास हमें गौरवान्वित करता है बात 1998 की है जब स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई की सरकार थी और कैलेंडर में तारीख 11 मई की थी यह महज एक तारीख नहीं थी बल्कि एक ऐसा कदम था जिसने पूरे विश्व की नजरों को भारत की ओर मोड़ दिया इसका कारण भी कोई छोटा नहीं था भारत ने इसी तारीख में ऑपरेशन शक्ति "पोखरण सेकंड" का सफलतापूर्वक परीक्षण कर लिया। अभी तो यह शुरुआत थी इसी तारीख को अगले क्रम में घरेलू स्तर पर तैयार किया गया एयरक्राफ्ट "हंस 3" का परीक्षण बंगलुरु से किया। बात यहीं खत्म नहीं होती 11 मई को ही त्रिशूल मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण कर लिया गया। स्वर्गीय अब्दुल कलाम आजाद का वैज्ञानिक के रुप में इस समूचे कार्यक्रम में अविस्मरणीय योगदान था। दुनिया हैरान थी,भारत अपने लक्ष्य को साध चुका था। तमाम अड़चनों एवं वैश्विक दबाव के बावजूद भारत ने वह कर दिखाया जिसकी वजह से देश को छठे न्युक्लियर पावर के रूप में जाना जाने लगा। पोखरण परमाणु परीक्षण एवं उपर्युक्त गतिविधियों ने देश को जो दिया वह बहुत ही बड़ी उपलब्धि थी। यह उपलब्धि हमेशा याद रखने के लिए तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने 11 मई की तारीख को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस घोषित कर दिया। इस दिन विभिन्न नवाचारों की उपलब्धि को सराहा जाता है जिनके द्वारा देश पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसी दिन भारत स्वदेशी प्रौद्योगिकी में उनके योगदान के लिए लोगों को राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जाता है। ज्ञातव्य हैपहला परमाणु परीक्षण मई 1974 में किया गया जिसे "इस्माइलिंग बुद्धा" के नाम से जाना जाता है। मैं इस बात को बहुत दृढ़ होकर दोहराना चाहता हूँ कि आज फिर इस संकट के समय हमारे देश के इंजीनियर और वैज्ञानिक जो कार्य कर रहे हैं इस पर यह दिवस और प्रासंगिक हो जाता है। कोविड 19 बीमारी से लड़ने के लिए जो मेडिकल इक्विपमेंट हमें चाहिए वह शुरू से ही आयात किया जा रहा था लेकिन यहां के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने इनके निर्माण में जो भूमिका निभाई है, अत्यंत सराहनीय है। विदेशों से आयात किए जाने वाला पीपीई किट ,जॉच किट,वेंटिलेटर अत्यंत कम खर्चे में निर्मित किए जा रहे हैं। इस विभिषिका के समय में इंजीनियर और वैज्ञानिकों ने अपने क्षेत्र में विशेष योगदान दिया जिसकी वजह से हम इस बीमारी से लड़ने के लिए मुश्तैद हैं। यह नवाचार की ही देन है कि लाखों की कीमत वाले वेंटिलेटर कुछ हजार के खर्चे में ही तैयार हो जा रहे हैं। विदेश से आयातित पीपीई किट करोड़ों की संख्या में उत्पादित की जा रही है। विदेशों से मंगाई जा रही किट में खामी मिलने के बाद से ही कई संस्थान इसको बनाने में जुटे हैं। भारत संक्रमण काल के खतरों से अगर ठीक ढंग से लड़ पा रहा तो इसकी सबसे बड़ी वजह यहां के इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की इच्छाशक्ति है। वर्तमान सरकार ने हाल में ही कुछ ऐसे प्रयास किये हैं जिससे इनकी आत्मशक्ति को बल मिले। लेकिन जब यह संकट के बादल छँट जायें तो सरकार को शोध एवं अनुसंधान हेतु प्रचुर मात्रा में धन निर्गत करना चाहिए जिससे अपने देश की सीमा के अंदर ही नवाचारों को बल मिले जो राष्ट्र हित में अति आवश्यक कदम होगा। प्रत्येक वर्ष पारित होने वाले बजट में ज्यादा से ज्यादा धन शोध एवं अनुसंधान के मद में खर्च किया जाना चाहिए जिससे हमारा देश संकट के समय में किसी अन्य देश की तरफ कातर नेत्रसे न देखें। आइये थोड़ा समय निकालकर इन संस्थाओं को प्रोत्साहित करें।