विशाल कुमार पाण्डेय की कलम से
रोज डे के विरोध में बेहया का फूल (व्यंग्य )
जो हर ले ह्रदय का शूल।
जो गर्मी में भी है कूल कूल।।
जी हां साथियो ऐसा व्यंग,
सदाबहारी, बेहया का फूल।
यूँ तो बेहया और बेहया के फूल का अपना एक महत्व है।अब यह अलग बात है कि हम जैसे देसी घी नही पचा पा रहे ,दूध दही से दूर मदिरा का सेवन कर रहे है,ठीक उसी अज्ञान के कारण बेहया को नजर अंदाज करते चले जा रहे है,जबकि हम में से 80 प्रतिशत लोगो की पिछली 10 पीढ़ियों से कोई ना कोई कभी ना कभी बेहया के उपाधि अलंकरण से विभूषित हो चुका होगा,भले ही आप का जाती,धर्म लिंग, कुछ भी हो। बेहया और बेहयाई दोनों का राष्टरीय करण बहुत पहले ही हो चुका था।
जैसे कोई बेटा,अपनी माँ से,कोई बाप से कोई गुरु से कोई अपनी भाभी ,काकी,चाची और बेहया चाचा से।
अभी इधर कुछ दिनों से पढ़ी लिखी 3 डी पत्नियों ने पतियों को भी बेहया कहना शुरु कर दिया है।
इन मे सुपर हिट सामाजिक बेहया होते है,जो समाज के बिभिन्न सामाजिक मंजिलों में अपना एक मुकाम भी बना लेते है,और सभा की शोभा बढ़ाते है।
अफसोस जिस कीचड़ में बेहया का जन्म,लालन,पालन होता है ,उस कीचड़ को कुछ पूंजीवाद के शिकार गुलाब और कमल का घर बताते हुए कहते है कि कीचड़ में कमल खिलता है।अफसोस ।
जबकि कबीरदास जी ने डंके की चोट पर कहा था कि
काहे री नलनी तू कुम्हलानी,
तेरे ही नालि सरोवर पानी।
जल में उत्पति जल में वास।।
जल में नलनी तोरी निवास।।
लेकिन यही बेहया के घर कीचड़ को ,कुछ साहित्य कारो, कथित इतिहास कारो ने कमल को दे दिया।
एक समय था,जब शिक्षा में बेहया था यानी अनुशासन था,तब गुरुदेव बेहया शिष्य के लिये बेहया के डंडे का प्रयोग कर उसे सुधारते थे,और वह बालक देश का नाम रोशन करता था। कई कई महापुरुष ने अपने आत्म कथा में भी इस बात का जिक्र पूरे इत्मीनान और मुक्कमल तौर पर किये है। सात समंदर पार भी बल्ब,बाजे,वाले कुछ बेहया मौजूद थे।
बेहया की पत्तियों में कभी इतना दम था कि बैध भगवान इसी से नपुंसकता से लेकर गठिया तक के रोगों का इलाज करते थे, और आज डॉ जूने जैसे जो अब नीम हकीम तिलचटात्ता,जोक माटा के तेल से और विदेशी मशीनों से इलाज करने का दावा करते है,जो दावा ही रह जाता है।
अपने बेहयाई के बल पर बहुत से कलाकार ,सफेद कॉलर, बहुत से कुबेर आइटम को जेब मे रख लिए है।
कॅरोना काल मे बेहया को यह जानकर बहुत कष्ठ हो रहा है कि इंसानों मै भी कुछ लोग बेहया से मुकाबला करना चाह रहे है, लॉक डाउन को तोड़ रहे है।।
अब दुख की बात यह है कि बेहया भी अपने बेहया समाज से उपेछित हो गया है।अवल दर्जे के बेहया भी अब बाजार बाद का शिकार होकर ओरिजनल बेहया के फूल की माला ना पहन कर वर्ण संकरी गुलाब ,गेंदा की माला पहनकर इतराते है।आज बेहया का अपना कुछ भी नही हैं।
फिर भी बेहया बेहया की तरह तन कर खड़ा है। अपने सुंदरता पर खुद ही मोहित है।उसका बिकास अनुपम है ।
जिस नाले की खुसबू से लोग घायल है,वह उसी नाले के आस पास अपनी छटा बिखेर रहा है।
आइए हम सभी लोग साल में एक दिन बेहया महोत्सव मनाए।एक दूसरे को बेहया का फूल दे,हो सके तो माला भी पहनाए।