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देवोत्थान, प्रबोधिनी एकादशी आखिर क्यों मनाया जाता है त्योहार के रूप में

मयंक श्रीवास्तव की कलम से




ऐसी मान्यता है चुर्तमास के उपरांत आज विष्णु जी नींद से उठते है और उनका विवाह लक्ष्मी के साथ सम्पन्न होता है लक्ष्मी अर्थात जीवन में सम्पन्नता का आगमन और इसी के साथ सारे शुभ कार्यों का आरंभ भी होता है। वर्षा ऋतु से लगातार खेतो में जीवन की व्यस्तता के बीच यह पल जीवन में मिठास और नई आस का होता है जिसकी प्रतिक्षा न केवल आम जन को बल्कि बाजारों को भी रहता है पिछले चार मास से विवाह आदि शुभ संस्कार न होने से आम जीवन में एक तरह निराशा उत्पन्न हो जाती है जो आज से रौनक बढ़ने लगती है 

लीपे हुए आंगन में चावल के घोल से बनते अल्पना के चित्र जिसे आम बोलचाल की भाषा में ढिढौने का चौक पूरना कहते हैं यह कला हमारे प्राचीन सभ्यता की दीवारों से होकर वर्तमान को जोड़ती है जो हमारी संस्कृति को औरों से अलग और श्रेष्ठ होने की गरिमा प्रदान करती है। इस चौक के साथ कितनी ही स्त्रियों की उंगलियां सदियों से सफर करती हुई आंगन को सजाती आई हैं जिससे हमारे घर के आंगन की संपूर्णता को एक स्वरूप मिलता है। इस व्रत को समपूर्णता प्रदान करने के लिए सुदूर गांवों से साइकिल रिक्शा आटो पर गन्ना और सिंघाड़ा (सकरकंद) गंजी की फसल को लाद कर शहर के बाजारों में लाया जा रहा है और ये सारे यत्न आज श्री हरि विष्णु के नींद से उठने की तैयारी में चल रही है जिसे सनातन में देवोत्थान, प्रबोधिनी एकादशी के रूप में जानते हैं जो कार्तिक मास में मनाई जाती है।


ऐसी मान्यता है चुर्तमास के उपरांत आज विष्णु जी नींद से उठते है और उनका विवाह लक्ष्मी के साथ सम्पन्न होता है लक्ष्मी अर्थात जीवन में सम्पन्नता का आगमन और इसी के साथ सारे शुभ कार्यों का आरंभ भी होता है। वर्षा ऋतु से लगातार खेतो में जीवन की व्यस्तता के बीच यह पल जीवन में मिठास और नई आस का होता है जिसकी प्रतिक्षा न केवल आम जन को बल्कि बाजारों को भी रहता है पिछले चार मास से विवाह आदि शुभ संस्कार न होने से आम जीवन में एक तरह निराशा उत्पन्न हो जाती है जो आज से रौनक बढ़ने लगती है और सभी अच्छे व्यवसाय के अवसर मिलने के लिए आशान्वित हो उठते हैं, आज के दिन लोग व्रत रखते है हिंदू मान्यता में ईश्वर की आराधना के लिए उपासना को बहुत महत्वपूर्ण माना गया इस दिन लोग सत्यनारायण भगवान की कथा भी सुनते हैं। इस दिन सूप और गन्ने का प्रयोग दरिद्रता को भगाने में किया जाता हैं। आज से किसान अपने गन्ने की उपज को काटना प्रारंभ कर देते हैं। इसी एकादशी के बाद द्वादशी को विष्णु जी का विवाह तुलसी जी के साथ सम्पन्न होता है। जो किसी स्त्री के शक्ति की प्रकाष्ठा को दर्शाता है।


संबंधित चित्र सत्यनारायण जी कथा की है जो हमारे मित्र मनोज जी की माता जी नियमित रूप से सुनती रहती है। जिनके जीवन वांग्मय में लोक परंपराए आस्था बन कर उपासना के रूप जब निखरती है तो संस्कृति मौन होकर उनसे बहुत कुछ सीखती है। सभ्यता के ये रंग कितने चटक होते है ये इन चित्रों से समझा जा सकता है।

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