मयंक श्रीवास्तव की कलम से
यह है निमोना मेरी जान
उत्तर प्रदेश के अवधी इलाके से निकला ये व्यंजन अपनी लोकप्रियता के चलते न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि बिहार के साथ साथ और भी कई राज्यों में लोकप्रिय है। ज्यादातर अवधी व्यंजन अपनी नजाकत और नफासत के लिए जाने जाते हैं जिनमे उम्दा मसालों की खुशबू और गुलावटी कबाब की तरह जो जुबान से हलक के बीच की दिलकश दूरी ऐसे तय करें जिसमे वक्त का कोई फासला न हो जो फिरनी की तरह गाढ़ा और लजीज हो और कीमें की तरह हर उम्र के दांत वालो के लिए आसान हो। ये सारी खूबियां मटर निमोने में एक साथ ऐसे गुथी हुई रहती जैसे ये व्यंजन न होके स्वाद की कोई क्यारी हो।।
सर्दियों के आते ही हमारी थाली के व्यंजन बदलने लगते हैं और खासतौर से खाने की शौकीनों के लिए जाड़े का मौसम किसी सौगात से कम नही । जब हमारे इलाकों में धान की फसल काट कर गेहूं चना और मटर लाही बोने की तैयारी शुरू होती है तो हिमाचल और पंजाब के कुछ इलाकों से हरी मटर की आवक से सब्जियों के बाजार गुलजार हो उठते हैं हालाकि इनके दाम बहुत अधिक होते हैं किंतु शौकीनों के लिऐ ये बात बहुत मायने नहीं रखते।
उनका मन एक खास व्यंजन की तलाश में रहता है जिसे निमोना कहते हैं, निमोना सर्दियों की सौगात हैं। उत्तर प्रदेश के अवधी इलाके से निकला ये व्यंजन अपनी लोकप्रियता के चलते न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि बिहार के साथ साथ और भी कई राज्यों में लोकप्रिय है। ज्यादातर अवधी व्यंजन अपनी नजाकत और नफासत के लिए जाने जाते हैं जिनमे उम्दा मसालों की खुशबू और गुलावटी कबाब की तरह जो जुबान से हलक के बीच की दिलकश दूरी ऐसे तय करें जिसमे वक्त का कोई फासला न हो जो फिरनी की तरह गाढ़ा और लजीज हो और कीमें की तरह हर उम्र के दांत वालो के लिए आसान हो। ये सारी खूबियां मटर निमोने में एक साथ ऐसे गुथी हुई रहती जैसे ये व्यंजन न होके स्वाद की कोई क्यारी हो।।
इसकी शुरुआत कैसी हुई ये कह पाना प्रमाणिक रूप से कठिन है किंतु कबाब की तरह ही कमजोर दांत वालो के लिए ये तैयार किया गया होगा जिसमे पिसे हुए मटर के दाने भुनते हुए जब गर्म मसालों में घुलते हैं उसकी रंगत और तासीर को शब्दो में बयां करना बेहद कठिन है।
निमोना सदियों से बनता आ रहा है ये तब भी थे जब मिक्सी नही थी सिल लोढ़ा पे मटर के दाने चलते हुए हाथों के साथ कलाइयों की चूड़ियों से वार्तालाप करते उधर कड़ाही चूल्हे पर बैठ कर प्रतिक्षा करती और जब मसालों के साथ इसे भूना जाता तो भूख तृप्ति के साथ नृत्य करती हुई प्रतिक्षारत नजर आती।
निमोना और चावल का साथ वैसे ही है जैसे जल का प्यास के साथ, प्रेम का मिठास के साथ, सांसों का जीवन के साथ,और रोशनी का उजास के साथ है और यदि चावल में काला नमक होता तो इसकी सुगंध भरी मिठास के क्या कहने एक समय में बासी निमोना और चावल पर लोगो को फिदा होते हुए हमने वो दौर भी देखें हैं।
धीरे धीरे काला नमक हमसे दूर होता गया किंतु इसकी भरपाई को बहुत हद तक कनकजीर पूरा कर रहा है।
आज से कुछ वर्ष पहले तक ज्यादातर घरों में मटर नवा के बाद खाई जाती थी नवा अर्थात नए उपज का सम्मान जिसमे मटर (गुदरी) मुख्य होता था। खेतो से तोड़कर आए मटर निकलने से अधिक खा लिया करते थे और बची हुई फलिया बैल को खाने के लिए दिया जाता था। वो दौर खेती किसानी का स्वर्ण काल हुआ करता।
कहते हैं कोस कोस पर पानी बदले चार कोस पर बानी किंतु निमोना उत्तर प्रदेश के अवधी भोजपुरी या बिहार में जाकर भी नही बदलता और न ही इसके शौकीन।।