प्राचीन केदारेश्वर मंदिर में लगा भक्तों का तांता, हर हर महादेव के जयकारों से गूंजा शिवालय
भैसा अवतार में बैठे हैं महादेव,आज भी सबसे पहले अदृश्य शक्ति करती है महादेव की पूजा
झांसी के मऊरानीपुर के ग्राम रौनी एवं चितावद के बीच स्थित पर्वत शिखर पर प्रसिद्ध एवं प्राचीन श्री केदारेश्वर महादेव मंदिर पौराणिक काल का है। भगवान केदारेश्वर की स्थापना महाभारत कालीन समय की बताई जाती है। इस मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण में भी किया गया है। केदारेश्वर महादेव की मूर्ति यहां भैंसे के आकार में है। इसी पर शिवलिंग विराजमान है। केदारेश्वर महादेव की महिमा को लेकर कई कथाएं भी प्रचलित हैं। सावन मास में लाखों श्रद्धालु मंदिर में पूजा व बाबा भोलेनाथ के दर्शन करने आते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि केदारेश्वर महादेव की स्थापना पांडवों के अज्ञातवास के दौरान महाबली भीम ने की थी। महादेव ने भीम की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था। यह बात भी प्रचलित है कि भगवान केदारेश्वर महादेव का पूजन सबसे पहले कोई मनुष्य नहीं कर पाता। दैवीय शक्तियों द्वारा केदारेश्वर भगवान की सबसे पहले पूजा की जाती है। कई श्रृद्धालु पूरे सावन मास मंदिर पर रात्रि विश्राम कर कल्पवास करते हैं। सावन मास में प्रत्येक सोमवार को व प्रदोष को श्रृद्धालुओं का सैलाब मंदिर पर उमड़ पड़ता है। सावन मास में कई शिव भक्त कांवड़ियां में विभिन्न स्थानों से पवित्र जल लाकर भगवान केदारेश्वर का जलाभिषेक व पूजन करते हैं।
मंदिर पर श्रृद्धालुओं के रुकने के लिए हॉल व विश्रामालय भी बनवाए गए हैं। भगवान केदारेश्वर मंदिर परिसर व पहाड़ को आकर्षक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है। श्री केदारेश्वर मंदिर पर जाने के लिए ग्राम रौनी से सीढ़ियां बनी हैं। लगभग 600 सीढ़ियों पर चढ़कर मंदिर पहुंचा जा सकता है। ग्राम चितावद की ओर से भी सीढ़ियां हैं, चितावद की ओर से मंदिर जाने के लिए लगभग 10 वर्ष पहले सड़क बनवाई गई थी लेकिन यह सड़क काफी दुर्गम है। लेकिन इसी सड़क से प्रतिमाह हजारों श्रद्धालु अपने वाहनों से केदारेश्वर मंदिर के पास तक पहुंच जाते हैं। मंदिर के पास दो प्राचीन कुंड भी बने हैं जिनमें वर्षा से समुचित जल भरा रहता है।