धर्मेंद्र कुमार पाण्डेय
पीरियड के दौरान महिलाओं को मिलेगी छुट्टी जनहित याचिका दायर
याचिका में इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट से दखल की गुहार लगाते हुए कहा गया है कि मासिक धर्म में दर्द से राहत के लिए अवकाश को लेकर विधायक शक्तियों की कमी है क्योंकि संबंधित मामलों पर लोकसभा में 2 सांसदों ने प्राइवेट बिल पेश किए थे। लेकिन दोनों बिल लैप्स कर दिए गए थे। गौरतलब है कि 2018 में शशि थरूर ने फीमेल सेक्सुअल रिप्रोडक्शन एंड नेचुरल राइट्स बिल पेश किया था इसमें कहा गया था कि महिलाओं को पब्लिक अथॉरिटी फ्री में सेनेटरी पैड आदि उपलब्ध कराएं।
दिल्ली।युवतियों और महिलाओं के लिए एक बड़ी ख़बर है। वकील शैलेन्द्र मणि त्रिपाठी ने एक याचिका दायर की है यह याचिका महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस याचिका के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट से राज्य सरकारों को महिलाओं के लिए मासिक धर्म की समस्या में छुट्टी के लिए नियम बनाने के लिए निर्देश जारी करने की मांग की गई है। गौरतलब है की इस याचिका में यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ लंदन की एक स्टडी का हवाला दिया गया है जिसमे ये बात कही गई है की पीरियड्स का दर्द हार्ट अटैक में होने वाले दर्द के बराबर दर्द महसूस होता है और इस दर्द की वजह से कामकाजी महिलाओं की कार्य क्षमता प्रभावित होती है। आपको बता दें की इस जनहित याचिका में मातृत्व अधिनियम 1961की धारा 14 को प्रभावी तौर पर लागू करने की कवायद की गई है। याचिका में छात्राओं और कामकाजी महिलाओं के लिए पीरियड्स से होने वाले दर्द के लिए अवकाश दिए जाने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है की इस अधिनियम के के प्रावधानों को लागू करने के लिए अधिकारयों की नियुक्ति भी सुनिश्चित करने की बात भी कही है। ध्यान देने वाली बात है की इस याचिका में बिहार की महिला कर्मचारियों को पीरियड्स में मिलने वाली छुट्टी का भी हवाला दिया गया है। बिहार में 1992 की नीति के के तहत महिला कर्मचारियों को विशेष मासिक धर्म दर्द अवकाश प्रदान किया जाता है जो वहाँ की कामगार महिलाओं के लिए बहुत सुविधाजनक होता है। इस याचिका में ये बात रखी गई है की देश के अन्य राज्यों में महिलाओं को मासिक धर्म के दर्द या मासिक धर्म की छुट्टी न देना या इनकार करना संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता और गरिमापूर्ण जीवन जीने के उनके मौलिक संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है।
लोक सभा में भी पेश हो चुका है दो बार बिल लेकिन नतीजा शून्य
याचिका में इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट से दखल की गुहार लगाते हुए कहा गया है कि मासिक धर्म में दर्द से राहत के लिए अवकाश को लेकर विधायक शक्तियों की कमी है क्योंकि संबंधित मामलों पर लोकसभा में 2 सांसदों ने प्राइवेट बिल पेश किए थे। लेकिन दोनों बिल लैप्स कर दिए गए थे। गौरतलब है कि 2018 में शशि थरूर ने फीमेल सेक्सुअल रिप्रोडक्शन एंड नेचुरल राइट्स बिल पेश किया था इसमें कहा गया था कि महिलाओं को पब्लिक अथॉरिटी फ्री में सेनेटरी पैड आदि उपलब्ध कराएं। इसी तरह दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार को कहा था कि पीरियड्स की छुट्टी के लिए दाखिल पायल को रिप्रेजेंटेशन के तौर पर देखा जाए। वहीं लोकसभा में केंद्र सरकार ने एक बार लिखित में जवाब देकर कहा था कि सेंट्रल सिविल सर्विसेज लीव रूल्स 1972 में मेंस्ट्रुअल लीव के लिए कोई प्रावधान नहीं है।
अन्य देशों में मेंस्ट्रूअल लीव को लेकर है यह प्रावधान
इस कड़ी में स्पेन ने पिछले साल उठाया था बड़ा कदम। पिछले साल मई में स्पेन ने महिलाओं को पीरियड पर हर महीने 3 दिन की छुट्टी देने का ऐलान किया था इतना ही नहीं वहां कैबिनेट बैठक में सुधार पैकेज के तहत स्कूलों की उन लड़कियों के लिए सेनेटरी पैड देने की मंजूरी की गई थी जिन्हें हर महीने पीरियड्स की समस्या से रूबरू होना पड़ता है।