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अंतहीन स्वाद की यात्रा है सफड़ा और भूईफोर

मयंक श्रीवास्तव की कलम से


बस्ती।हर वर्ष वर्षा के प्रारंभ होते ही बाजारों में अंतहीन स्वाद की यात्रा को गढ़ने वाले प्रकृति के अनुपम उपहार के रूप सफडा और भूईफोर आ जाता था किंतु इस वर्ष वैसी बारिश नही हुई थी।किंतु पिछले दो तीन दिनों से हो रही बारिश सिर्फ अपने साथ बूंदों को ही नहीं बरसा रही बल्कि ये अरमानों की बरिस में मनचाहे ख्वाबों के पूरा होने के जैसी है।वर्षा ऋतु के प्रारंभ होते ही आसपास के जंगलों से सफड़ा बिकने के लिए बाजारों में आता है किंतु भादो के आखिरी में होने वाली बरसात में गांवों बागो के खेतों नहरो के पास की मिट्टी दरकने लगती है और उसके अंदर से झांकते हुई चीज को शौकीन पहचान लेते है दूधिया सफेद और सिर पर गोल टोपी का आकार लिए ये मशरूम जिन्हे स्थानीय भाषा में भूईफोर कहते हैं लोगों की पहली पसंद होती है  इसके प्रति लोगो की दीवानगी का आलम इस कदर होता है कि लोगबाग गाड़ी रोककर भावताव करते नजर आते है। मिट्टी से सने होने के बावजूद भी हल्का सा छिलने पर उज्ज़र रंग उसके ताजगी की बानगी होती है जो अपने साथ असंख्य स्वाद को गढ़ती हैं।

भूइफोर शाकाहारी होते हुए भी उन लोगो को विशेष रूप से भाती है जो नानवेज के शौकीन होते हैं।प्रकृति अपने साथ न जाने कितने उत्पाद हमारे बीच लाती है और हम सब उसे अपने स्वाद के अनुसार मनचाहा व्यंजन बनाते हैं।तो आइए आपको एक ऐसे अनोखे स्वाद के सफर पर लिए चलते हैं।इसकी तैयारी भी कम झंझट वाली नही एक बड़े से बर्तन में पानी में आकंठ तक डूबे भुईफोर को भिगोया जाता है और धीरे धीरे इसकी मिट्टी साथ छोड़ती जाती है पहली बारिस की मिट्टी की खुशबू से पूरा रसोई गुंजायमान हो उठता है उधर खड़े गरम मसाले की खुशबू गुलाबी होते हुए प्याज को बड़े गौर से देखते है इधर लहसुन अदरक के पेस्ट में मिलकर कड़ाही फूली नहीं समाती तेजपत्ते की पत्तियां किसी फूल की पंखुड़ी की भांति इठलाती हुई नजर आती है और अब गरम मसाले प्याज और लहसुन से लिपटकर रंग और स्वाद के अनंत यात्रा बढ़ने लगते है शेष  योगदान हल्दी मिर्च का बना रहता है और अब भुईफोर को कई पानी से साफ करके कड़ाही में डाल दिया जाता है। जैसे वर्षो के बाद अपने मिलते है ठीक वैसे ही कड़ाही में भावनाओं का मिलन नई संभावनाओं के रंगो को गढ़ता है। उधर हरी धनिया मुस्कराती हुई कटने के लिय बेकरार रहती है। कुछ देर की उबाल और ढेरो स्वादो को लिए अब भुईफोर तैयार है। रोटियां गढ़ते हुए आज न जाने क्यों लोइयां कुछ अधिक बन जाती है इतने खूबसूरत स्वाद की कहानियों में कुछ एक रोटियां अधिक हो जाएं तो इसे अधिक नहीं कहते।

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