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सामुदायिक भावना

 सामुदायिक भावना 

समुदाय के निर्माण में सामुदायिक भावना (community sentiment) का महत्व स्थानीय क्षेत्र से कम नहीं है। इसी भावना को 'हम को भावना' भी कहा जाता है। सामुदायिक भावना का तात्पर्य एक ऐसी भावना से है जिसके द्वारा व्यक्ति किसी विशेष समूह को अपना मानते हैं तथा उसके प्रत्येक सदस्य के सुख-दुःख में रुचि लेते हैं। उसकी अच्छाई-बुराई को अपनी अच्छाई बुराई मानते हैं और उसी की सफलता को अपनी सफलता समझते हैं।

community sentiment

मैकाइवर ने लिखा है कि जब एक निश्चित क्षेत्र में बहुत से व्यक्ति काफी समय तक साथ-साथ रहते हैं, तब उनमें समान प्रकार की मनोवृत्तियाँ, व्यवहार और रुचिया विकसित हो जाती हैं। इसके फलस्वरूप वे लोग यह समझने लगते हैं कि वे सभी एक-दूसरे के समान हैं तथा एक-दूसरे को सहयोग देना उनका नैतिक कर्तव्य है। इसका तात्पर्य यह है कि समुदाय के हित व्यक्तिगत स्वार्थों से अधिक महत्वपूर्ण बन जाते हैं। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि सामुदायिकता की भावना का विकास बहुत कुछ एक स्थानीय क्षेत्र में रहने के कारण ही होता है। यही कारण है कि हम सबसे पहले अपने पड़ोस के सदस्य होते हैं, इसके बाद गाँव के, फिर नगर के और सबसे बाद में राष्ट्र के। इसका तात्पर्य यह है कि स्थानीय दूरी बढ़ने के साथ ही सामुदायिक भावना में भी एक स्पष्ट कमी दिखाई देती है। अपने पड़ोस के व्यक्ति के साथ हम जितनी निकटता अनुभव करते हैं, अपने गाँव के अन्य लोगों से यह निकटता कुछ कम हो जाती है, जबकि नगर के अन्य निवासियों से यह और कम होने लगती है। इससे स्पष्ट होता है कि जिस समूह के प्रति हमारी सामुदायिक भावना' जितनी अधिक तीव्र होगी, वह समूह हमारा उतना ही अधिक निकटवर्ती समुदाय होगा।

सामुदायिक भावना विशेष रूप से तीन रूपों में स्पष्ट होती है-

(क) हम की भावना, 

(ख) दायित्व की भावना तथा 

(ग) निर्भरता की भावना। 

    हम की भावना के द्वारा हम कुछ व्यक्तियों स्थानों अथवा वस्तुओं को अपना मानते हैं और उनके प्रति हमारा विशेष लगाव होता है। दायित्व की भावना एक समुदाय के सदस्यों में यह विचार उत्पन्न करती है कि समुदाय के सभी तरह के कार्यों में हिस्सा बँटाना और दूसरे सदस्यों की सहायता करना उनका नैतिक कर्तव्य है। धीरे-धीरे यह भावना सदस्यों की आदत के रूप में बदल जाती है। निर्भरता की भावना के प्रभाव से एक समुदाय के सभी सदस्य यह समझने लगते हैं कि वे सभी एक-दूसरे पर निर्भर हैं तथा दूसरे लोगों से सहायता लिये बिना वे अपनी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकते। इस प्रकार यह तीनों भावनाएं संयुक्त रूप से सामुदायिक भावना को बढ़ाकर एक समुदाय को संगठित बनाती हैं। यह सच है कि आज स्थान परिवर्तन की प्रवृत्ति में वृद्धि होने और निर्भरता की भावना में कमी आने के फलस्वरूप सामुदायिक भावना में भी परिवर्तन होने लगा है लेकिन समुदाय के विकास और संगठन के लिए सामुदायिक भावना का होना एक आवश्यक तत्व है।

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