सामाजिक असमानता (Social Inequality)
किसी समाज की वह अवस्था जिसके अन्तर्गत उस समाज के सभी व्यक्तियों को सामाजिक आधार पर समान महत्त्व प्राप्त नहीं होते, 'सामाजिक असमानता' कहलाती है। प्रत्येक समाज में उपलब्ध सामाजिक संसाधन, पूंजी के तीन रूपों में विभाजित किए जा सकते हैं पहला भौतिक सम्पत्ति एवं आय के रूप में आर्थिक पूंजी, दूसरा प्रतिष्ठा और शैक्षणिक योग्यताओं के रूप में सांस्कृतिक पूँजी, तीसरा सामाजिक संगतियों और सम्पकों के जाल के रूप में सामाजिक पूँजी
किसी भी समाज में पूंजी के इन तीनों रूपों में पारस्परिक परिवर्तन होता रहता है। परिवर्तन के क्रमिक विकास द्वारा समाज में संस्तरण भी परिवर्तित होता रहता है। सामाजिक संसाधनों के इन तीनों रूपों तक जब समाज के सभी वर्गों की समान पहुंच नहीं होती है तब सामाजिक असमानता का जन्म होता है। यद्यपि सामाजिक असमानता का कारण प्राकृतिक भी हो सकता है, क्योंकि प्राय: यह स्वीकार किया जाता है कि प्रत्येक समाज में लोगों की व्यक्तिगत योग्यता और क्षमता भी भिन्न होती है। अतः समान परिस्थिति में एक व्यक्ति सामाजिक रूप से उच्चतर स्थिति को प्राप्त कर सकता है जबकि अन्य व्यक्ति वह स्थिति प्राप्त नहीं कर पाता।
समाज में उत्पन्न सामाजिक असमानता को जब उसके प्रारम्भिक स्तर पर रोका नहीं जाता है तो यह व्यवस्था पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रहती है। समाज के विकास के साथ-साथ सामाजिक असमानता की खाई भी बढ़ने लगती है। इसका कारण यह है कि सामाजिक संसाधनों का संकेन्द्रण समाज के कुछ विशेष वर्गों तक ही सीमित हो जाता है। प्राय: यह स्वीकार किया जाता है कि एक व्यक्ति की सामाजिक स्थिति प्रदत्त ( अर्थात् अपने आप प्राप्त होती है। जाति व्यवस्था, एक अन्य कारक है, जो समाज में असमानता को जन्म देती है, क्योंकि किसी विशेष जाति के अन्तर्गत व्यक्ति के व्यावसायिक अवसरों का भी निर्धारण होता है। उदाहरण के लिए एक दलित जाति में जन्म लेने से प्रायः व्यक्ति द्वारा सफाईकर्मी या चमड़े का कार्य किया जाता है और इस प्रकार व्यक्ति इस कार्य से बँधकर रह जाता है। परिणामतः सामाजिक असमानता का जन्म होता है।