वेश्यावृत्ति
वेश्यावृत्ति (Prostitution) सामाजिक बुराई के रूप में अति प्राचीनकाल से प्रचलित रही है। इससे व्यक्ति का शरीरिक एवं नैतिक पतन होता है, अर्थ लाभ के लिए स्थापित यौन सम्बन्ध वेश्यावृत्ति है, किन्तु वर्तमान समय में वेश्यावृत्ति के बदलते स्वरूप में महिलाओं, लड़कियों को झाँसे में फँसाकर उन्हें वेश्यावृत्ति कार्य में लगाया जाता है। वेश्यावृत्ति मानव के पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन में विष घोल देती है। इलियट और मैरिल लिखते हैं, "वेश्यावृत्ति एक भेद-रहित और धन के लिए स्थापित किया गया अवैध यौन सम्बन्ध है जिसमें भावात्मक उदासीनता होती है।" वेश्यावृत्ति को रोकने के लिए 1956 में 'स्त्रियों तथा कन्याओं का अनैतिक व्यापार निरोधक अधिनियम' पारित किया गया है।' फिर भी यह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही रूप में भारत में विद्यमान है। प्रत्यक्ष रूप में वे वेश्याएँ आती हैं जो रजिस्टर्ड होती हैं तथा स्पष्ट रूप से वेश्यालय चलाती हैं। शहरों में ऐसे क्षेत्र को जहाँ वेश्याएँ रहती हैं 'लाल रोशनी क्षेत्र' (Red Light Area) कहते हैं। अप्रत्यक्ष रूप से वेश्यावृत्ति करने वाली स्त्रियाँ नौकरी या व्यवसाय के साथ-साथ यह कार्य भी करती हैं। वर्तमान में बड़े-बड़े शहरों के शराबघरों, होटलों, कैबरे स्थलों, नाचघरों तथा क्लबों में शिक्षित और उच्च घरों की लड़कियाँ भी इस व्यवसाय में लगी होती हैं।
समाज ने अपनी मान्यताओं, रूढ़ियों और त्रुटिपूर्ण नीतियों द्वारा इस समस्या को और जटिल बना दिया है। वेश्याओं की बेटियाँ भी अपनी माँ की वृत्ति अपनाने को बाध्य होती हैं। वेश्यावृत्ति का एक रूप देवदासी प्रथा भी है। इस प्रथा के अनुसार लड़कियों को मन्दिरों में देवताओं की सेवा के लिए भेंट चढ़ा दिया जाता है। वेश्यावृत्ति के कारण नारी जगत का अपमान होता रहा है। इससे वैयक्तिक, पारिवारिक एवं सामाजिक विघटन में वृद्धि, नैतिक पतन, आर्थिक हानि एवं यौन रोगों में वृद्धि होती है। अतः मानवता एवं नैतिकता की मांग है। कि वेश्याओं को इस कुकर्म से रोक कर नारी जाति के प्रति किए जाने वाले इस अपराध से नारी की रक्षा की जाए।