सहयोग पर आधारित संघवाद (CO-OPERATIVE FEDERALISM)
भले ही भारतीय संविधान के अन्तर्गत राज्यों को निश्चित शक्तियां प्रदान की गई हैं तथा इन शक्तियों के बारे में उन्हें पूर्ण स्वायत्तता प्राप्त है, परन्तु, संघ का भाग होने के कारण उन्हें अन्य ईसाइयों व संघीय सरकार के साथ सहयोग से कार्य करना पड़ता है। इस सहयोग की भावना को बढ़ावा देने के उद्देश्य से संविधान ने एक अन्तर्राजीय परिषद् (Inter-State Council) का प्रावधान किया है जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। अन्तर्राज्यीय परिषद् विभिन्न राज्यों के झगड़ों की छानबीन करती है और उनके बारे में परामर्श देती है। यह उन विषयों के बारे में विचार-विमर्श व छानबीन करती है जो कुछ अथवा सभी राज्यों के सामान्य हित में हैं।
यह इन विषयों पर राज्यों द्वारा अपनाई जाने वाली नीति व कार्यवाही में बेहतर तालमेल स्थापित करने का प्रयास करती है। यह राज्यों के उन सामान्य सूची वाले विषयों पर विचार-विमर्श करती है जो इसके पास भेजे जाते हैं। यह ध्यान देने योग्य बात है कि भले ही अन्तर्राज्यीय परिषद् का प्रावधान मूल संविधान में किया गया था परन्तु इसकी स्थापना केवल 1990 में सरकारिया कमीशन की सिफारिश पर की गई। इस परिषद् के सदस्यों में प्रधानमंत्री व उन राज्यों तथा संघीय क्षेत्रों के मुख्यमंत्री सम्मिलित हैं जहां पर विधान सभाएं हैं। इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री अपने मंत्रिमंडल के 6 कैबिनेट स्तर के मंत्रियों को परिषद् में मनोनीत कर सकता है। परिषद् के सुचारू रूप से कार्य करने के लिए एक सचिवालय की व्यवस्था की गई है। परिषद् की वर्ष में कम-से-कम 3 बैठकें होती हैं। इसकी बैठकें गुप्त रूप से होती हैं तथा सभी निर्णय सर्वसम्मति से लिए जाते हैं। परिषद् की बैठकों की अध्यक्षता प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है। उसकी अनुपस्थिति में बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत केबिनेट स्तर का कोई केन्द्रीय मंत्री करता है।
उल्लेखनीय है कि 1990 में गठन के पश्चात अन्तर्राज्यीय परिषद् कुछ समय तक सक्रिय नहीं रही। परन्तु 1996 में संयुक्त मोर्चा सरकार ( United Front Government) ने इसे पुनः सक्रिय करने का निर्णय लिया। इसने केन्द्र तथा राज्यों के बीच बढ़ते हुए मतभेदों को दूर करने तथा केन्द्र-राज्य सम्बंधों में अधिक तालमेल और सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक पैनल (Panel) गठित किया।
केन्द्र में 1996 के पश्चात गठित मिली-जुली सरकारों (जिसमें अनेक क्षेत्रीय दल सक्रिय भागीदार थे) ने भारतीय संघीय व्यवस्था को एक नया आयाम दिया है। तब से केन्द्र व राज्यों में अधिक विचार-विमर्श व तालमेल स्थापित हो गया है और केन्द्र द्वारा राज्यों को अधिक शक्तियां प्रदान किए जाने की सम्भावना है। इसके फलस्वरूप देश में वास्तविक संघीय व्यवस्था के विकसित होने की सम्भावना है।