वर्ग-निर्धारण के आधार
(BASES OF CLASS DETERMINATION)
वर्ग की अवधारणा को यदि उपर्युक्त विशेताओं के आधार पर स्पष्ट किया जाय तो भी यह जानना आवश्यक हो जाता है कि वे कौन-से आधार है जो समाज को एक-दूसरे से भिन्न वर्गों में विभाजित करते हैं ? इस सम्बन्ध में मार्क्स का कथन है कि वर्ग-निर्धारण का वास्तविक आधार उत्पादन के साधनों अथवा भौतिक वस्तुओं पर लोगों के स्वामित्व की सीमा है। इस दृष्टिकोण से इतिहास के प्रत्येक युग में समाज सदैव दो वर्गों में ही विभाजित रहा है जिन्हें 'बुर्जुआ' तथा 'सर्वहारा वर्ग कहा जाता है। पहले यह बर्जुआ वर्ग मालिक और सामन्तों के रूप में था, जबकि आज इसी को पूँजीपति वर्ग कहा जाता है। सर्वहारा वर्ग कभी दासों के रूप में था तो कभी अर्द्ध-दास किसानों के रूप में, जबकि आज इसी को श्रमिक वर्ग कहा जाता है। यदि सामाजिक प्रस्थिति, योग्यता तथा विभिन्न भौतिक सुविधाओं को वर्गों के निर्धारण का आधार माना जाय तो सम्पूर्ण समाज को ऐसे पाँच मुख्य वर्गों में विभाजित किया जा सकता है जिनकी रचना एक पिरामिड की तरह होती है। इस पिरामिड में सर्वोच्च स्थान पूँजीपति अथवा उद्योगपति वर्ग का है क्योंकि इनका पूंजी और उत्पादन के साधनों पर एकाधिकार होता है। दूसरा स्थान प्रबन्धक तथा प्रशासनिक वर्ग का है जिनकी कुशलता और ज्ञान का उपयोग किये बिना सामाजिक और आर्थिक जीवन को व्यवस्थित नहीं बनाया जा सकता। तीसरा स्थान व्यावसायिक वर्ग का है जिसमें वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों, चिकित्सकों, इन्जीनियरों, कलाकारों और इसी तरह के अन्य व्यवसायियों को सम्मिलित किया जाता है। चौथा स्थान समाज के उस मध्यम वर्ग का है जो एक मध्यस्थ के रूप में समाज को विभिन्न प्रकार की सेवाएं प्रदान करता है। सामान्य व्यापारी, कार्यालयों के कर्मचारी, छोटे उत्पादक और साधारण सेवाएँ प्रदान करने वाले व्यक्ति इसी वर्ग में आते हैं। अन्तिम स्थान निम्न वर्ग का है। इस वर्ग के सदस्य अकुशल होने के कारण शारीरिक श्रम के द्वारा आजीविका उपार्जित करते हैं, यद्यपि संख्या में इस वर्ग के सदस्य सबसे अधिक होते हैं। इनमें से प्रत्येक वर्ग की जीवन शैली तथा समाज में उन्हें प्राप्त होने वाली सुविधाएँ एक-दूसरे से भिन्न होती हैं।
वास्तविकता यह है कि विभिन्न वर्गों का निर्धारण किसी एक विशेष आधार पर ही नहीं होता। इस दृष्टिकोण से रॉबर्ट बीरस्टीड ने अपनी पुस्तक 'द सोशल ऑर्डर' (The Social Order) में वर्ग-निर्माण अथवा वर्ग:निर्धारण के सात सम्भावित आधारों का उल्लेख किया है। इस सम्बन्ध में यह ध्यान रखना आवश्यक है। कि परम्परागत समाजों की तुलना में आधुनिक समाज में वर्गों का निर्माण करने वाले आधारों में शक्ति-व्यवस्था का भी महत्वपूर्ण स्थान है। अतः निम्नांकित विवेचना में वर्ग-निर्माण के हम उन आठ आधारों की संक्षेप में विवेचना करेंगे जिनका आधुनिक और परम्परागत समाजों में विशेष महत्व है। इनमें से पहले चार आधार आधुनिक समाजों में अधिक महत्वपूर्ण है, जबकि बाद के चार आधारों का परम्परागत समाजों में अधिक प्रभाव देखने को मिलता है।